google-site-verification=jDzVKY1k67OVw2owQhjxJii_WQzhVCAKNi9gP_sWprU नकटी गांव का दर्द:~ 85 घरों पर बेघर होने का साया, "विधायक कॉलोनी" के नाम पर उजड़ेंगी जिंदगियां?

नकटी गांव का दर्द:~ 85 घरों पर बेघर होने का साया, "विधायक कॉलोनी" के नाम पर उजड़ेंगी जिंदगियां?

 आशियाना बचा लो साहब! नकटी गांव में 85 परिवारों की सिसकियां, विधायक कॉलोनी के लिए उजड़ने का फरमान

नकटी गांव रायपुर में परेशान छत्तीसगढ़ी आम जनता।

रायपुर, छत्तीसगढ़। राजधानी रायपुर से महज कुछ किलोमीटर दूर बसे नकटी गांव में इन दिनों मातम पसरा है। यहां के 85 घरों के आंगन में खुशियों की जगह अब आंसुओं और खौफ ने ले ली है। एक सरकारी नोटिस ने इन परिवारों की रातों की नींद और दिन का चैन छीन लिया है। नोटिस में साफ लिखा है – "घर खाली कर दीजिए, इन्हें तोड़ा जाएगा।" वजह बताई जा रही है कि यहां "विधायक कॉलोनी" बननी है। यह वही जमीन है जिसे ये ग्रामीण अपनी पुरखों की धरोहर बताते हैं, जहां उनकी कई पीढ़ियां पली-बढ़ीं, और जहां उन्होंने अपनी खून-पसीने की कमाई से अपने सपनों का आशियाना खड़ा किया।

धरती हिल गई पैरों तले नकटी गांव में 85 घरों पर मंडराता बुलडोजर का साया

नकटी गांव के इन 85 परिवारों के लिए जिंदगी कभी आसान नहीं रही। रोज कमाना, रोज खाना, पाई-पाई जोड़कर बच्चों का पेट पालना और सिर पर एक पक्की छत का सपना देखना – यही इनकी दुनिया रही है। कई परिवार यहां 30, 40, यहां तक कि 50 सालों से रह रहे हैं। अचानक आए इस सरकारी फरमान ने उनके पैरों तले जमीन खिसका दी है। ग्रामीणों का कहना है कि यह नोटिस उन्हें पिछले डेढ़-दो साल से रुक-रुक कर मिल रहा था, लेकिन इस साल जनवरी से अब तक तीन बार विध्वंस का नोटिस आ चुका है। ताजा नोटिस में तो महज दो-तीन दिन की मोहलत दी गई है। एक ग्रामीण महिला बिलखते हुए कहती है, "दुई दिन के मुहूत दे हम ला, तो हम कहां जाबो दुई दिन के मुहूत में? बड़े बरसात आने वाला है, हमार बच्चा छोटे-छोटे है, हम कहां जाबो?"

इन 85 घरों में सिर्फ दीवारें और छतें नहीं हैं, बल्कि इनमें धड़कती हैं सैकड़ों जिंदगियां। छोटे-छोटे बच्चे, जिनकी किलकारियां इन आंगनों में गूंजती थीं, आज सहमे हुए हैं। बुजुर्ग, जिन्होंने अपनी जिंदगी का बड़ा हिस्सा यहीं गुजारा, अब अपनी आंखों के सामने अपना सब कुछ उजड़ते देखने को मजबूर हैं। एक मां का दर्द छलक पड़ता है, "आज हम कर्जा करके हम घर उठाइन। एक लाख देके घर उठत नहीं, उठत बता? हम वाला कर्जा करके घर बनाए। पैसा जो सरकार दे पचास हजार लिखा होही, का तो बेटा तो मन खरीदत हो तो सब जानत हो, पचास हजार में बन जाही का?"

पीढ़ियों की यादें, पुश्तैनी जमीन और एक झटके में बेघर होने का डर

ग्रामीणों का दावा है कि यह जमीन उनके पुरखों की है, "चारागाह" के लिए छोड़ी गई जमीन, जिस पर वे पीढ़ियों से बसते आए हैं। एक निवासी ने बताया, "ये जगह ना हमर पूर्वज मन के चारा गान बर छोड़े रिहिस। वही में हम सब झन आके बसेन। और पूरा मोर सियान मन 30 से 35 साल तक यहां निवास करत है।" उनका कहना है कि वे छत्तीसगढ़ के मूल निवासी हैं, कोई बाहर से आकर नहीं बसे। "हम छत्तीसगढ़ के छत्तीसगढ़ के बेटी, छत्तीसगढ़ के निवासी। आखिर हम छत्तीसगढ़ के जगह भुइयां हमर घर द्वार छोड़ के हम कहां जाबो?" यह सवाल आज हर नकटी वासी की जुबान पर है।
पहले उन्हें बताया गया था कि 15 एकड़ जमीन ली जाएगी, जिस पर वे सहमत भी हो गए थे। लेकिन अब प्रशासन पूरे 38 एकड़ जमीन खाली करवाना चाहता है। यह फैसला ग्रामीणों के लिए किसी वज्रपात से कम नहीं है।

सरकारी उम्मीद की दरार प्रधानमंत्री आवास योजना के घर भी निशाने पर

इस त्रासदी की सबसे बड़ी विडंबना यह है कि तोड़े जाने वाले घरों में कई घर प्रधानमंत्री आवास योजना (PMAY) के तहत बने हैं। सरकार ने ही गरीबों को छत मुहैया कराने के लिए यह योजना चलाई, और अब वही सरकार इन घरों को तोड़ने का नोटिस थमा रही है। एक महिला, जिसके घर में अभी सेंटिंग भी ठीक से नहीं खुली है, कहती है, "मोर घर में भी मोर ससुर के नाम से आवास मिले हे। लेकिन आवास के सेंटिंग अभी खुले हे। हम एको रात भी वहां गुजारा नइ करे हन, और हम मन के पास आ गे हे नोटिस कि तुमन घर खाली करो। तब वही सरकार हम ला जब आवास के घर देवत हे, और वही सरकार हमर घर तोरे के नोटिस भी देवत हे। तो ये सरकार ला हम का समझन?" यह सवाल सिर्फ उसका नहीं, बल्कि उन सभी का है जिन्होंने सरकारी मदद से अपने घर का सपना साकार किया था। ग्रामीणों का कहना है कि PMAY के तहत मिली राशि (जैसे ₹50,000) घर बनाने के लिए नाकाफी थी, और उन्हें अपनी जमा पूंजी और कर्ज लेकर इन घरों को पूरा करना पड़ा।

टूटते वादे, अनसुनी फरियादें जनप्रतिनिधियों से विश्वासघात का आरोप

अपनी फरियाद लेकर ये ग्रामीण दर-दर भटक रहे हैं। मंत्रियों से लेकर स्थानीय विधायक तक, हर चौखट पर उन्होंने दस्तक दी, लेकिन आश्वासन के सिवा कुछ हाथ नहीं लगा। सबसे ज्यादा नाराजगी उन्हें अपने स्थानीय विधायक अनुज शर्मा से है, जिन्हें उन्होंने बड़े भरोसे और उम्मीदों के साथ चुना था। एक ग्रामीण महिला का गला भर आता है, "हम वही चीज के हम अनुज शर्मा के हम कि हमर रक्षा करके हम चुने हन। अनुज जी शर्मा हमर धोखा निकल गे।" ग्रामीणों का आरोप है कि विधायक ने पहले मदद का भरोसा दिया था, लेकिन अब वे भी ऊपर के आदेश का हवाला दे रहे हैं।

ग्रामीणों ने बताया कि वे बोरियाकला में बृजमोहन अग्रवाल से भी मिले, लेकिन वहां भी उनके आवेदन को कथित तौर पर फेंक दिया गया। "सुशासन त्यौहार" के दौरान नकटी गांव से लगभग 400 आवेदन दिए गए थे, लेकिन ग्रामीणों का दावा है कि सभी आवेदनों को निराकृत कर दिया गया। एक भी आवेदन पर सुनवाई नहीं हुई। यह कैसा सुशासन है, जहां जनता की आवाज अनसुनी कर दी जाती है?

दर्द, गुस्सा और संघर्ष का संकल्प क्या कहती है नकटी गांव की जनता?

नकटी गांव के हर चेहरे पर आज बेबसी, दर्द और गुस्सा साफ झलक रहा है। उनका कहना है कि वे अपनी जमीन, अपने घर नहीं छोड़ेंगे। "जब बुलडोजर आ रही ना, तब पहली हम ला मारी, तब हमर घर ला तोड़ी। ए हमन ठान के बैठे हन।" यह सिर्फ एक धमकी नहीं, बल्कि उनके अस्तित्व की लड़ाई का ऐलान है। एक अन्य निवासी ने कहा, "हम यहां से ना हिलन भी नहीं कभी भी। कुछ भी करे, पुलिस आए, कुछ भी आए, कोई सरकार आ जाए, हम यहां से हम हटना ही नहीं है।"

उनका आरोप है कि छत्तीसगढ़ के मूल निवासियों को उजाड़कर बाहर के लोगों को बसाने की साजिश हो रही है। "चिल कौवा मन के, गिधवा मन के हे ये तारा नेता मन के। पापी मन विदेश ला के बसाही, वो राज करही, और हमन छत्तीसगढ़ के जगह धरती भुइयां छोड़ के कुत्ता मन के डर में भागबो? कहां जाबो?"

अनसुलझे सवाल विकास किसके लिए और किस कीमत पर?

  • यह पूरा मामला कई गंभीर सवाल खड़े करता है। क्या विकास का मतलब सिर्फ कंक्रीट के जंगल खड़े करना है, या इसमें मानवीय संवेदनाओं का भी कोई स्थान है?


  •  क्या "विधायक कॉलोनी" बनाना इतना जरूरी है कि उसके लिए 85 परिवारों को उनकी जड़ों से उजाड़ दिया जाए? वह भी तब, जब पास में ही एयरपोर्ट है और जमीन की कीमतें आसमान छू रही हैं – यह इशारा काफी है कि खेल कुछ और भी हो सकता है।


  • सरकार और प्रशासन को यह समझना होगा कि घर सिर्फ ईंट-पत्थर का ढांचा नहीं होता, बल्कि वह लोगों के सपनों, उनकी यादों और उनकी पूरी जिंदगी का आधार होता है। 


  • नकटी गांव के निवासी कोई अतिक्रमणकारी नहीं हैं, वे दशकों से वहां रह रहे हैं। उनके पास इसके सिवा कोई और ठिकाना नहीं है। सिर पर मंडरा रही बरसात और कोरोना काल की आर्थिक मार ने उन्हें पहले ही तोड़ रखा है। ऐसे में उनके आशियाने को छीन लेना किसी भी मानवीय दृष्टिकोण से उचित नहीं ठहराया जा सकता।


  • फिलहाल, नकटी गांव के लोग एकजुट होकर इस अन्याय के खिलाफ लड़ने का मन बना चुके हैं। वे चंदा इकट्ठा करके कानूनी लड़ाई लड़ने की भी तैयारी कर रहे हैं। उनकी बस एक ही मांग है – "हमारा घर मत तोड़ो।" अब देखना यह है कि छत्तीसगढ़ सरकार इन गरीबों की पुकार सुनती है, या फिर विकास के नाम पर इन 85 परिवारों की जिंदगियां उजाड़ दी जाती हैं। 

  • यह मामला छत्तीसगढ़ में भूमि अधिकारों, विस्थापन और सरकार की गरीब-हितैषी नीतियों की एक बड़ी परीक्षा है।

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