नमस्कार साथियों! एक बार फिर वैश्विक कूटनीति के गलियारों में हलचल तेज हो गई है। रूस की ओर से एक ऐसा आवाहन आया है। जिसने दुनिया भर के सभी विशेषज्ञों का ध्यान अपनी ओर खींचा है।
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रूस का आवाहन फिर से 'ट्रायका' को जिंदा करें। |
एक नई वैश्विक बिसात की आहट
मॉस्को ने खुले तौर पर भारत और चीन को एक साथ आने का न्योता दिया है, ताकि पुरानी 'ट्रायका' यानी रूस-भारत-चीन (RIC) की तिकड़ी को पुनर्जीवित किया जा सके। सवाल यह है कि अचानक रूस को इसकी जरूरत क्यों महसूस हुई? क्या यह अमेरिकी प्रभुत्व को सीधी चुनौती देने का एक नया प्रयास है? और सबसे महत्वपूर्ण, क्या भारत और चीन, जिनके अपने द्विपक्षीय मुद्दे हैं, इस आवाहन पर सकारात्मक प्रतिक्रिया देंगे? आइए, इस पूरे मामले की तह तक चलते हैं और समझते हैं कि इसके मायने क्या हैं।
रूस क्यों चाहता है भारत और चीन का साथ? क्या ट्रंप का डर खत्म हो गया है?
रूसी विदेश मंत्रालय की हालिया टिप्पणी, कि मॉस्को "वास्तव में रूस-भारत-चीन (RIC) ट्रायका प्रारूप को पुनर्जीवित करने में रुचि रखता है," ने इस बहस को जन्म दिया है। विश्लेषकों का मानना है कि रूस यह संदेश देना चाहता है कि वह पश्चिमी दबाव, विशेषकर अमेरिकी प्रतिबंधों के आगे झुकने वाला नहीं है। शायद रूस को लगता है कि पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप का दौर, जब उन पर चौतरफा दबाव बनाने की कोशिशें हुईं, अब उतना प्रभावी नहीं रहा है। इसलिए, वह अपने पुराने सहयोगियों को एकजुट कर एक नया शक्ति केंद्र बनाने की फिराक में है। 'ट्रायका' शब्द का अर्थ है तीन घोड़ों वाली गाड़ी, जो इस संदर्भ में तीन देशों द्वारा मिलकर वैश्विक व्यवस्था को एक नई दिशा देने का प्रतीक है।
'ट्रायका' का इतिहास: जब पहली बार अमेरिका के खिलाफ एकजुट हुए थे तीन बड़े देश
'ट्रायका' का विचार कोई नया नहीं है। इसकी जड़ें 1990 के दशक में जाती हैं, एक ऐसा दौर जब तीनों देशों – रूस, भारत और चीन – ने अपने-अपने तरीके से बड़ी चुनौतियों का सामना किया था।
- रूस का विघटन: 1991 में सोवियत संघ का विघटन हुआ, जिससे रूस एक बड़ी महाशक्ति की अपनी पुरानी हैसियत खो बैठा। इसे शीत युद्ध में अमेरिका के हाथों हार के तौर पर देखा गया।
- भारत का आर्थिक संकट: भारत 1991 में गंभीर आर्थिक संकट से जूझ रहा था, जिसके चलते उसे अपनी अर्थव्यवस्था को उदारवादी, निजीकरण और वैश्वीकरण (LPG) की अमेरिकी-समर्थित नीतियों के लिए खोलना पड़ा।
- चीन का तियानमेन स्क्वायर: चीन में तियानमेन स्क्वायर पर लोकतंत्र समर्थक प्रदर्शनों को सख्ती से कुचला गया, जिसके लिए चीन ने पश्चिमी, खासकर अमेरिकी, हस्तक्षेप को जिम्मेदार ठहराया।
- इसी पृष्ठभूमि में, तत्कालीन रूसी प्रधानमंत्री येवगेनी प्रिमाकोव ने 1998 में अमेरिकी एकध्रुवीय वर्चस्व को संतुलित करने के लिए रूस, भारत और चीन के बीच एक त्रिपक्षीय रणनीतिक गठबंधन का विचार प्रस्तुत किया। प्रिमाकोव ने दिसंबर 1998 में भारत का दौरा भी किया और प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के समक्ष यह प्रस्ताव रखा। इसका उद्देश्य था कि तीनों देश मिलकर एक ऐसी बहुध्रुवीय विश्व व्यवस्था की वकालत करें जहां किसी एक देश का दबदबा न हो।
गलवान से लेकर ब्रिक्स तक कैसे रिश्तों में आई खटास और अब नई उम्मीद
हालांकि, 'ट्रायका' की राह हमेशा आसान नहीं रही। भारत और चीन के बीच सीमा विवादों ने इस मंच की प्रगति को कई बार बाधित किया।
- डोकलाम (2017): भूटान के डोकलाम क्षेत्र में भारत और चीन की सेनाओं के बीच हुए गतिरोध ने पहली बार 'ट्रायका' की बैठकों पर ब्रेक लगाया। हालांकि, कुछ महीनों बाद स्थिति सामान्य हो गई और 2018 में फिर से बैठकें शुरू हुईं।
- गलवान घाटी (2020): गलवान घाटी में हुई हिंसक झड़प ने भारत-चीन संबंधों को दशकों के सबसे निचले स्तर पर पहुंचा दिया। इसके बाद भारत ने 'ट्रायका' से लगभग किनारा कर लिया। यह वह दौर था जब अमेरिका ने भारत को साधने के लिए 'क्वाड' (Quad - अमेरिका, भारत, जापान, ऑस्ट्रेलिया) को सक्रिय रूप से बढ़ावा देना शुरू किया, जिसे चीन अपने खिलाफ एक गठबंधन के तौर पर देखता है।
- चीनी मीडिया, जैसे ग्लोबल टाइम्स, ने अक्सर यह आरोप लगाया है कि अमेरिका ही भारत और चीन के बीच दरार पैदा करता है। उनका मानना है कि भारत में 'बॉयकॉट चाइना' जैसे अभियानों के पीछे अमेरिकी मीडिया का हाथ है, जिसका वैश्विक सूचना तंत्र पर काफी नियंत्रण है।
इस बीच, ब्रिक्स (ब्राजील, रूस, भारत, चीन, दक्षिण अफ्रीका) जैसे मंचों पर ये देश मिलते रहे। ब्रिक्स देशों ने अमेरिकी डॉलर के प्रभुत्व को चुनौती देने के लिए एक साझा मुद्रा या वैकल्पिक भुगतान प्रणाली पर भी विचार किया। जब ऐसी चर्चाएं जोर पकड़ने लगीं, तो डोनाल्ड ट्रंप ने, जो उस समय राष्ट्रपति चुनाव लड़ रहे थे, धमकी दी कि यदि ब्रिक्स देश डॉलर को कमजोर करने की कोशिश करते हैं तो वह उन पर भारी टैरिफ लगा देंगे। भारत ने इस पर सतर्क प्रतिक्रिया देते हुए कहा था कि उसका डॉलर का विकल्प तलाशने का कोई तात्कालिक इरादा नहीं है।
भारत की कूटनीतिक दुविधा क्या संतुलन साधने की नीति पड़ेगी भारी?
भारत जो "मध्यम मार्ग" अपनाता है, उसके कारण संकट के समय कोई भी देश खुलकर उसके साथ खड़ा नहीं होता। चाहे वह "ऑपरेशन सिंदूर" का मामला हो, रूस-यूक्रेन युद्ध पर भारत का रुख हो, या इजराइल-हमास संघर्ष, भारत को अक्सर नैतिक समर्थन तो मिला, लेकिन ठोस जमीनी सहयोग का अभाव दिखा। इसकी तुलना में, पाकिस्तान जैसे देश स्पष्ट पक्ष लेते हैं, जिससे उन्हें कुछ देशों का खुला समर्थन मिलता है।
ट्रंप द्वारा भारत को "टैरिफ किंग" कहना और व्यापारिक दबाव बनाना इसी रणनीति का हिस्सा था, जिससे भारत कुछ हद तक दबाव में भी आया। जब चीन ने अमेरिकी टैरिफ का मिलकर मुकाबला करने का परोक्ष प्रस्ताव दिया, तब भी भारत ने पाकिस्तान के प्रति चीन के रुख को देखते हुए ज्यादा उत्साह नहीं दिखाया।
आगे की राह क्या 'ट्रायका' का पुनर्जन्म वैश्विक शक्ति संतुलन को बदल देगा?
अब जब रूस ने एक बार फिर 'ट्रायका' को जिंदा करने का आह्वान किया है, तो गेंद भारत और चीन के पाले में है।
- रूस की मंशा: यूक्रेन युद्ध के बाद पश्चिमी देशों द्वारा अलग-थलग किए जाने के प्रयासों के बीच रूस अपने लिए नए सहयोगी और मंच तलाश रहा है। वह दिखाना चाहता है कि वह वैश्विक मंच पर अकेला नहीं है।
- चीन का रुख: चीन भी अमेरिकी दबाव का सामना कर रहा है और वह किसी भी ऐसे मंच का स्वागत करेगा जो अमेरिकी प्रभुत्व को कम करने में सहायक हो। भारत के साथ सीमा विवाद के बावजूद, चीन एक बड़े रणनीतिक लक्ष्य के लिए 'ट्रायका' में शामिल होने को तैयार हो सकता है।
भारत के लिए चुनौतियां और अवसर
- चुनौतियां चीन के साथ अविश्वास और सीमा विवाद सबसे बड़ी बाधा है। अमेरिका के साथ बढ़ते रणनीतिक संबंधों (विशेषकर क्वाड) को देखते हुए, 'ट्रायका' में सक्रियता भारत के लिए संतुलन साधना मुश्किल कर सकती है।
- अवसर 'ट्रायका' भारत को एक बहुध्रुवीय विश्व व्यवस्था की वकालत करने का एक और मंच प्रदान कर सकता है। यह रूस के साथ अपने पारंपरिक संबंधों को मजबूत करने और चीन के साथ बातचीत का एक और चैनल खोलने का अवसर भी दे सकता है।
- विशेषज्ञों का मानना है कि 2024 में कज़ान, रूस में हुई ब्रिक्स बैठक में पुतिन ने भारत और चीन के बीच हैंडशेक करवाने में भूमिका निभाई थी। यह दर्शाता है कि रूस इन दोनों एशियाई दिग्गजों को साथ लाने के लिए प्रयासरत है।
निष्कर्ष एक महत्वपूर्ण मोड़
रूस का 'ट्रायका' को पुनर्जीवित करने का आह्वान एक महत्वपूर्ण भू-राजनीतिक घटनाक्रम है। यह दर्शाता है कि दुनिया एकध्रुवीयता से बहुध्रुवीयता की ओर बढ़ रही है, और विभिन्न देश अपने हितों की रक्षा के लिए नए गठबंधन और मंच तलाश रहे हैं। भारत के लिए यह एक जटिल स्थिति है। उसे अपने राष्ट्रीय हितों, चीन के साथ अपने संबंधों की वास्तविकता और वैश्विक शक्ति संतुलन की बदलती गतिशीलता को ध्यान में रखते हुए सावधानी से कदम उठाने होंगे।
क्या 'ट्रायका' फिर से प्रभावी होगा, यह काफी हद तक भारत और चीन के राजनीतिक विवेक और उनके द्विपक्षीय मुद्दों को हल करने की क्षमता पर निर्भर करेगा। लेकिन एक बात तो तय है कि आने वाले दिनों में वैश्विक मंच पर नई रणनीतिक साझेदारियों और समीकरणों का दौर देखने को मिल सकता है, और 'ट्रायका' की चर्चा इसी बड़े बदलाव का एक संकेत है। यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या यह "तीन घोड़ों की गाड़ी" वास्तव में दुनिया को एक नई दिशा में ले जा पाती है या नहीं।